शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

भाजपा के अयोध्यायी तेवर से एनडीए में दरार बढ़ेगी

रांची: झारखण्ड की राजनीति में अयोध्या पर आया न्यायालय का फैसला क्या रंग लाता है, इस पर सरकार के सभी सूचना और अन्वेषण तंत्र काम कर रहे हैं, साथ ही साथ, भाजपा इसे भुनाने की जुगत में भी लगी है. लेकिन उसने अगर झारखण्ड में कोई फिर साम्प्रदाइक  खेल  खेलना शुरू किया तो, उसे सबसे पहले जदयू , झामुमो और आजसू के विरोध का सामना करना पडेगा. 
            अयोध्या फैसले के बाद जदयू के नेता बहुत सचेत हैं. ऐसे भी वे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की राजनीति से तिलमिलाए हुए हैं. जदयू का एक भी प्रतिनिधि मुंडा मंत्रिमंडल में नहीं लिया जा रहा है. फिर बिहार में विधान सभा चुनाव में भाजपा की नई रणनिती का भी निर्माण अयोध्या फैसले के आधार पर किया जा रहाहै. 
            नीतीश कुमार ने अपने करीबियों को भाजपा की नई रणनीति पर नजर रखने के लिए लगा दिया  है. नीतीश कुमार को मुसलमानों के वोट का प्रतिशत घटने का भय पहले से ज्यादा हो गया है. वे नरेंद्र मोदी के प्रकोप से ज्यादा बड़ा प्रकोप  भाजपा की नई रणनीति और  उत्साह को मान रहे हैं. कहीं इस फैसले पर अगर भाजपा ने ज्यादा उछल-कूद की तो जदयू का चुनावी समीकरण ही गड़बड़ा जाएगा.
            भाजपा के एक नेता ने भाजपा हाई कमान से कहा है कि इस फैसले के बाद भाजपा को बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए. भाजपा चुनाव में अकेली क्लीन स्वीप कर सकती है.  इसकी भनक झारखण्ड जदयू तक पहुंची है. ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार चुनाव का दृश्य बदलेगा और उसका पूरा असर झारखण्ड पर भी पडेगा.
            झामुमो को भी मुसलमानों के वोट की सख्त जरूरत है, लेकिन भाजपा के नए अयोध्यायी तेवर से उसके अंदर खलबली मची हुई है. शिबू सोरेन तो शुरू से ही भाजपा से दूरी बनाये रखने के पक्षधर थे , लेकिन पुत्र हट के कारण उनको भाजपा से लिखित माफ़ी भी मांगना पड़ा और मुख्यमंत्री  पद की दावेदारी भी छोडनी पड़ी. वैसे अभी शिबू सोरेन अपने पुत्र हेमंत सोरेन की रजनीति से स्वयं खार खाए हुए हैं. पार्टी पर उनकी पकड़ बहुत कमजोर हो गई है और से इस हालात में अपने को मजबूर पा रहे हैं.         

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