शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

पुरस्तक समीक्षा

पुरस्तक समीक्षा
बुद्ध के चार आर्य सत्य और दुखों का निवारण
दिलीप तेतरवे
रांची: डा. ऊमाचरण झा की पुस्तक," द फोर नोबल ट्रूत्स   एंड द धर्मपदा", श्रीलंका में बौद्ध धर्म के प्रचार और वहां इस धर्म के आधार पर पनपी संस्कृति का आईना है. श्रीलंका में बौद्ध मत अपनाया गया और उसे अपनी भौगोलिक स्थिति के अनुरूप परिस्कृत भी किया गया. संवर्धित किया गया. कुलमिला कर यह पुस्तक एक वास्तविक शोध ग्रन्थ है. 
         बुद्ध ने दुःख को चार कोटियों में विभाजित कर उनके होने के कारण बताए और दुःख दूर करने के सहज उपायों से भी दुनिया को अवगत कराया. प्रथम आर्य सत्य है- सब्बम दुक्खं -दुःख सर्वत्र व्याप्त  है. बुद्ध ने कहा है, नश्वरता बहुत दुखदाई है. इसे दूर करने के लिए "स्व" भावना को ह्रदय से तिरोहित करने की आवश्यकता है-नेतम मना,नसों हमस्मी, ना मेसो अनाति." 
          बुद्ध ने दूसर आर्य सत्य में बताया कि दुःख के क्या-क्या कारण हैं. यह किन-किन कारणों से उत्पन्न हो कर मानव को किस-किस तरह से उत्पीड़ित करते हैं. मानव की इंद्रियाँ- आँख, कान, नाक, जिह्वा, शरीर और मस्तिष्क सुख पाने की चेष्टा करते-करते, दुःख के सागर में विलीन हो जाते  हैं. मानव की लालसाएं अनंत हो जाती हैं और वह मृत्यु  के बाद मोक्ष पाने की जगह पुन:  जन्म लेने की प्रक्रिया में चला जाता है. दुःख का एक सिलसिला बन जाता है. 
          बुद्ध ने कहा कि दुखों के निवारण का तीसरा आर्य सत्य है, मुक्ति. मुक्ति का मार्ग क्या है ? जन्म-मरण से हम कैसे मुक्ति पा सकते हैं ? मुक्ति के उपाय बताते हुए बुद्ध ने कहा, "जैसे सागर के जल का स्वाद खारा होता है, वैसे ही मेरे धर्म मार्ग का स्वाद मुक्ति है." बुद्ध ने सन्देश दिया," लिप्सा त्याग कर जीवन को मुक्ति प्रदान करो." 
          दुःख निवारण का चौथा आर्य सत्य यह जानने में है कि निवारण का मार्ग क्या है ? बुद्ध का सन्देश है कि अन्धकार में भटकने से अच्छा है कि मानव अपना मार्ग, धर्म से प्रकाशित करे. मानव को बुद्ध के इन आठ सूत्रों को जीवन में उतारना चाहिए- १. सही समझ,२. उत्तम विचार,३. उचित वाणी, ४. उचित क्रियाकलाप,५. उचित रहन-सहन,६. उचित प्रयास,७. उचित मनःस्थिति  और ८. उचित ध्यान. 
          डा. ऊमाचरण  झा की यह पुस्तक नोवेल्टी एंड कम्पनी, पटना द्वारा प्रकाशित है. इस हार्ड बाउंड पुस्तक में २४१ पृष्ठ हैं. पुस्तक का मूल्य है ४५० रुपए है. पुस्तक पठनीय और संग्रहनीय है. 

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