झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के चार विधायकों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे मौक़ा मिलते ही मुंडा सरकार को गिरा देंगें और सरकार की छवि पर कुछ दागी मंत्री भी दाग लगाने के लिए मौजूद हैं.
झामुमो के विधायक साईमन मरांडी, सीता सोरेन, टेकलाल महतो और लोबिन हेम्ब्रोम ने विद्रोह का झंडा ऊठा लिया है. साईमन मरांडी ने कहा कि उनको जब मौक़ा मिलेगा वे सरकार को गिरा देंगें. वे सरकारी पक्ष में होते हुए भी विपक्ष के साथ रहेंगे. वे अपनी सदस्यता बचाते हुए मुंडा सरकार पर निशाना साधने से कभी चूकेंगे नहीं. उन्होंने कहा कि मोर्चा के वरिष्ठ सदस्यों को दरकिनार कर, सिबू सोरेन ने अपने बेटे के हाथ में पार्टी को थमा दिया है. क्या पार्टी का गठन सिबू सोरेन के बेटे के लिए हुआ था.
सिबू सोरेन की बहु और विधायक सीता सोरेन ने सिर्फ इतना ही कहा कि अब जब मनमानी हो ही गई है तो देखिये आगे और क्या-क्या होता है. पिछली बार जब सिबू सोरेन को अपना मुख्यमंत्री पद बचाने के लिए विधान सभा का चुनाव लड़ना था तब सीता सोरेन ने सिबू सोरेन के लिए सीट खाली नहीं की थी. इस बार उनको इसी अपराध में मन्त्री पद से वंचित कर दिया गया. मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में भी सीता सोरेन और असंतुष्ट अन्य तीन विधायकों को आने का आमंत्रण भी नहीं दिया गया.
जहाँ तक भाजपा में असंतुष्ट विधायकों और नेताओं का सवाल है, वे किसी भी दिन मुंडा सरकार के लिए संकट खड़ा कर सकते हैं. भाजपा की परम्परा है कि वे जब तक उसे किसी नेता से लाभ मिल रहा है उसे पूरा सम्मान और पावर दिया जाता है और काम निकलते ही उनको यूज एंड थ्रो के सिद्धांत पर दरकिनार कर दिया जाता है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रघुवर दास जब तक यूस के लायक थे पार्टी में उनकी तूती बोलती थी लेकिन जैसे ही वे भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी और अर्जुन मुंडा से टकराए और अडवाणी की मदद से मुख्यमंत्री बनने का प्रयास किया, वे पार्टी में अब एक साधारण कार्यकर्ता के अलावा कुछ भी नहीं रह गए हैं. उनके गुट के भाजपाई अभी वेट और वाच की स्थिति में हैं. उनका विश्वास है कि नितिन गडकरी ज्यादा दिनों तक भाजपा के अध्यक्ष नहीं रह पायेंगे. उनको लग रहा है कि गडकरी की तानाशाही के कारण बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. सी पी ठाकुर ने इस्तीफा दे दिया है.
गडकरी की नीति है कि जितनी जल्दी हो सके सीनियर नेताओं का मनोबल गिरा दिया जाये और पार्टी में अपना एक क्षत्र राज कायम कर लिया जाये. पार्टी के वरिष्ठ नेता इस रणनीति को समझ चुके हैं. भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर गडकरी के खिलाफ जो मोर्चेबंदी शुरू हुई है उसका नतीजा बिहार चुनाव के साथ सामने आ जाएगा. कुल मिला कर अब अर्जुन मुंडा के सामने एक ही उपाय बचा है वह है बोर्ड और निगमों की राबड़ी असंतुष्टों को के हाथों में डालना, लेकिन वे राबड़ी से मानेंगे नहीं.
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