शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

आखिर मुंडा जी ने सरकार बना ली और झामुमो में बगावत

झारखण्ड  मुक्ति मोर्चा के चार विधायकों ने स्पष्ट  कर दिया है कि वे मौक़ा मिलते ही मुंडा सरकार को गिरा देंगें और सरकार की  छवि पर कुछ दागी मंत्री  भी दाग लगाने के लिए मौजूद हैं.
       झामुमो के विधायक साईमन मरांडी, सीता सोरेन, टेकलाल महतो और लोबिन हेम्ब्रोम ने विद्रोह का झंडा ऊठा लिया है. साईमन मरांडी ने कहा कि उनको जब मौक़ा मिलेगा वे सरकार को गिरा देंगें. वे सरकारी पक्ष में होते हुए भी विपक्ष के साथ रहेंगे. वे अपनी सदस्यता बचाते हुए मुंडा सरकार पर निशाना साधने से कभी चूकेंगे नहीं. उन्होंने कहा कि मोर्चा के वरिष्ठ सदस्यों को दरकिनार कर, सिबू सोरेन ने  अपने बेटे के हाथ में पार्टी को थमा दिया है. क्या पार्टी का गठन सिबू सोरेन के बेटे के लिए हुआ था.
        सिबू सोरेन की बहु और विधायक सीता सोरेन ने सिर्फ इतना ही कहा कि अब जब मनमानी हो ही गई है तो  देखिये आगे और क्या-क्या होता है. पिछली बार जब सिबू सोरेन को अपना मुख्यमंत्री पद बचाने के लिए विधान सभा का चुनाव लड़ना था तब सीता सोरेन ने  सिबू सोरेन के लिए सीट खाली नहीं की थी. इस बार उनको इसी अपराध में मन्त्री पद से वंचित कर दिया गया. मंत्रियों के शपथ ग्रहण  समारोह में भी सीता  सोरेन और असंतुष्ट अन्य तीन विधायकों को आने का आमंत्रण भी नहीं दिया गया.
      जहाँ तक भाजपा में असंतुष्ट विधायकों और नेताओं का सवाल है, वे किसी भी दिन  मुंडा सरकार के लिए संकट खड़ा कर सकते हैं. भाजपा की परम्परा है कि वे जब तक उसे किसी नेता से लाभ मिल रहा है उसे पूरा सम्मान और पावर दिया जाता है और काम निकलते ही उनको यूज एंड थ्रो के सिद्धांत  पर दरकिनार कर दिया जाता है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रघुवर दास जब तक यूस के लायक थे पार्टी में उनकी तूती बोलती थी लेकिन जैसे ही वे भाजपा अध्यक्ष नितिन  गडकरी और अर्जुन मुंडा से टकराए और अडवाणी की मदद से मुख्यमंत्री बनने का प्रयास किया, वे पार्टी में अब एक  साधारण कार्यकर्ता के अलावा कुछ भी नहीं रह गए हैं. उनके गुट के भाजपाई अभी वेट और वाच की स्थिति में हैं. उनका विश्वास है कि नितिन गडकरी ज्यादा दिनों तक भाजपा के अध्यक्ष नहीं रह पायेंगे. उनको लग रहा है कि गडकरी की तानाशाही के कारण बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. सी पी ठाकुर ने इस्तीफा दे दिया है.
            गडकरी की नीति है कि जितनी जल्दी हो सके सीनियर नेताओं का मनोबल गिरा दिया जाये और पार्टी में अपना एक क्षत्र राज कायम कर लिया जाये. पार्टी के वरिष्ठ नेता इस रणनीति को समझ चुके हैं. भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर गडकरी के खिलाफ जो मोर्चेबंदी शुरू हुई है उसका नतीजा बिहार चुनाव के साथ सामने आ जाएगा. कुल मिला कर अब अर्जुन मुंडा के सामने एक ही उपाय बचा है वह है बोर्ड और निगमों की राबड़ी  असंतुष्टों को के हाथों में डालना, लेकिन वे राबड़ी से मानेंगे नहीं.          

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

बिहार चुनाव: दागियों को टिकट देने में भाजपा सबसे आगे

पटना: बिहार में चुनावी घमासान शुरू हो गया है और दागियों को टिकट देने में भाजपा ने तगड़ी लीड ले ली  है.  प्रमुख दलों, भाजपा, जदयू, राजद, लोजपा और  कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची में कुल ८० उम्मीदवार दागी हैं और उनमें से ४१ भाजपा के हैं. 
           दागियों को टिकट दे कर भाजपा, जदयू, राजद,  और लोजपा  ने अपना-अपना परिचय बनाये रखा है कि  वे जो बोलते हैं, उस पर कभी चलते नहीं. वैसे, इन तीनों दलों की स्पष्ट मान्यता है कि दल का टिकट उसे ही दो, जो  जीतने का दमखम रखता हो. नीतीश का तो भाषण ही शुरू होता है, गुंडा राज मिटाने के संकल्प से लेकिन वे सहारा तो हमेशा से लेते हैं दागियों का.  लगता है कि इस बार नीतीश ज्यादा गंभीर नहीं हैं, लेकिन उनकी सहयोगी भाजपा ने दागियों को रिकार्ड संख्या में टिकट दे कर उनका काम पूरा कर दिया है.
        नीतीश ने पिछले चुनाव में जिन-जिन दागियों को अपने 'साफ़ सुथरे' दल का टिकट दिया था, उनमें  से एक ने विधायक बनते ही जो तमाशा पटना के एक होटल में किया  था, उसका दूसरा मिसाल मिलना मुस्किल है.
          राजद और लोजपा तो दागियों की पुरानी शरण स्थली है ही और पासवान  लालू "वीनिंग उम्मीदवार" को ही टिकट देते हैं . यही कारण है कि लालू जी ने  चुनाव के पहले वे जेल जा कर शहाबुद्दीन साहब  से मिल आये. उनकी सलाह से उन्होंने लगभग चार तगड़े उम्मीदवार तय किये हैं. इस बार लालू जी के ददन पहलवान ने राजद का दामन छोड़ कर अपना अलग अखाड़ा जमा लिया है. उनके पास ताकत है तो फिर पार्टी की चिंता क्या करना. वे तो हमेशा ताकत के बल पर राजनीति करने में माहिर हैं.
           लालू जी इस बार ताकतवर उम्मीदवारों के मामले में पिछड़ गए हैं. उनके  ६५ उम्मीदवारों में मात्र नौ ही दागी हैं.  कांग्रेस ने भी कुछ तगड़े  उम्मीदवार खड़े किये हैं या तगड़े  लोगों के सगे या पत्नी को चुनाव लड़वाने के मूड में हैं. लवली आनंद कांग्रेस में हैं, जो जेल में सजा काट रहे  पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी है. वह चुनाव लड़ रही हैं. कांग्रेस के ७७ उम्मीदवारों में सिर्फ पांच दागी हैं.  
        अपने दल को सर्वादिक सभ्य  मानने  वाली भाजपा ने सर्वाधिक  दागियों को टिकट दिए हैं. भाजपा के ८७ उम्मीदवारों में ४१ दागी हैं और कुछ तो उसकी साम्प्रदायिकता  तो जीवंत रखने वाले उम्मीदवार हैं. सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ कर वोट लेने में माहिर भाजपा ने वैसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जो सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने के लिए इस चुनाव में प्रभावी  भूमिका निभायेंगे. 
       लोजपा की ३८ उम्मीदवारों की  पहली सूची में ८ उम्मीदवार दागी हैं. लगता है की पासवान जी को भी इस बार पहलवान छाप  के नेता नहीं मिले. 

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

ज्योतिषियों के चक्कर में फंसी मुंडा सरकार

रांची: अर्जुन मुंडा सरकार ज्योतिषियों के चक्कर में फंस गयी है या अपने ही जाल में उलझ गई है-इन्हीं दो पहलुओं के बीच इस सरकार की नैया डगमगा रही है. मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का कहना है कि वे इस बार कोई 'रिस्क' नहीं लेना चाहते हैं, इस लिए वे  ज्योतिषियों से मिले और आगामी आठ तारीख़ को उनकी सलाह पर वे मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे. दकियानूसी का इससे बड़ा उदाहरण  भारतीय राजनीति में  कहीं नहीं मिलेगा.
         लोग प्रश्न करने लगे हैं कि क्या अर्जुन मुंडा अपनी सरकार की सलामती के लिए कोई राज ज्योतिषी तो नियुक्त नहीं करेंगे. क्या अर्जुन मुंडा मंत्रिमंडल की बैठक की तिथियाँ भी ज्योतिषियों की सलाह पर निर्धारित करेंगे. वस्तुतः ज्योतिषीय सलाह के नाम पर अर्जुन मुंडा ज्यादा से ज्यादा समय चाहते हैं, ताकि वे अपने जहाज से उड़ते-भागते विधायकों को सहेज सकें और कम से कम पांच दस माह राज सुख  भोग सकें. वे  समय चाहते हैं ताकि शिबू सोरेन और उनके पुत्र हेमंत सोरेन को भी पटरी पर ला सकें. रह-रह कर शिबू सोरेन का ह्रदय मुख्यमंत्री बनने के लिए लालायित होने लगता है. जदयू भी विद्रोह के मूड में है तो आजसू में भी कम उठा-पटक नहीं चल रही है.  आजसू सुप्रिमो सुदेश महतो के लिए अपने कुनबे को सम्हालना मुश्किल   हो गया है. 
         हाल में संविधान का हवाला देते हुए राज्यपाल एमओएच फारूख ने मुख्यमंत्री  को पत्र लिख कर कहा है कि वे आठ तारीख़ तक अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर लें. लेकिन हालात कहते हैं कि मुंडा अपने मंत्रिमंडल का शायद ही विस्तार कर पाएं. भाजपा के आरएसएसवादी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मुंडा विरोधी रघुवर दास के पर जिस तरह कतरने की कोशिश की है, उसका परिणाम पार्टी को भुगतना ही पडेगा. आरएसएस से भाजपा में आये नेता भी गैर आरएसएसवादी अर्जुन मुंडा के बढ़ते कद और प्रभाव  को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. 

-जिया

           

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

पुरस्तक समीक्षा

पुरस्तक समीक्षा
बुद्ध के चार आर्य सत्य और दुखों का निवारण
दिलीप तेतरवे
रांची: डा. ऊमाचरण झा की पुस्तक," द फोर नोबल ट्रूत्स   एंड द धर्मपदा", श्रीलंका में बौद्ध धर्म के प्रचार और वहां इस धर्म के आधार पर पनपी संस्कृति का आईना है. श्रीलंका में बौद्ध मत अपनाया गया और उसे अपनी भौगोलिक स्थिति के अनुरूप परिस्कृत भी किया गया. संवर्धित किया गया. कुलमिला कर यह पुस्तक एक वास्तविक शोध ग्रन्थ है. 
         बुद्ध ने दुःख को चार कोटियों में विभाजित कर उनके होने के कारण बताए और दुःख दूर करने के सहज उपायों से भी दुनिया को अवगत कराया. प्रथम आर्य सत्य है- सब्बम दुक्खं -दुःख सर्वत्र व्याप्त  है. बुद्ध ने कहा है, नश्वरता बहुत दुखदाई है. इसे दूर करने के लिए "स्व" भावना को ह्रदय से तिरोहित करने की आवश्यकता है-नेतम मना,नसों हमस्मी, ना मेसो अनाति." 
          बुद्ध ने दूसर आर्य सत्य में बताया कि दुःख के क्या-क्या कारण हैं. यह किन-किन कारणों से उत्पन्न हो कर मानव को किस-किस तरह से उत्पीड़ित करते हैं. मानव की इंद्रियाँ- आँख, कान, नाक, जिह्वा, शरीर और मस्तिष्क सुख पाने की चेष्टा करते-करते, दुःख के सागर में विलीन हो जाते  हैं. मानव की लालसाएं अनंत हो जाती हैं और वह मृत्यु  के बाद मोक्ष पाने की जगह पुन:  जन्म लेने की प्रक्रिया में चला जाता है. दुःख का एक सिलसिला बन जाता है. 
          बुद्ध ने कहा कि दुखों के निवारण का तीसरा आर्य सत्य है, मुक्ति. मुक्ति का मार्ग क्या है ? जन्म-मरण से हम कैसे मुक्ति पा सकते हैं ? मुक्ति के उपाय बताते हुए बुद्ध ने कहा, "जैसे सागर के जल का स्वाद खारा होता है, वैसे ही मेरे धर्म मार्ग का स्वाद मुक्ति है." बुद्ध ने सन्देश दिया," लिप्सा त्याग कर जीवन को मुक्ति प्रदान करो." 
          दुःख निवारण का चौथा आर्य सत्य यह जानने में है कि निवारण का मार्ग क्या है ? बुद्ध का सन्देश है कि अन्धकार में भटकने से अच्छा है कि मानव अपना मार्ग, धर्म से प्रकाशित करे. मानव को बुद्ध के इन आठ सूत्रों को जीवन में उतारना चाहिए- १. सही समझ,२. उत्तम विचार,३. उचित वाणी, ४. उचित क्रियाकलाप,५. उचित रहन-सहन,६. उचित प्रयास,७. उचित मनःस्थिति  और ८. उचित ध्यान. 
          डा. ऊमाचरण  झा की यह पुस्तक नोवेल्टी एंड कम्पनी, पटना द्वारा प्रकाशित है. इस हार्ड बाउंड पुस्तक में २४१ पृष्ठ हैं. पुस्तक का मूल्य है ४५० रुपए है. पुस्तक पठनीय और संग्रहनीय है. 

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

भाजपा के अयोध्यायी तेवर से एनडीए में दरार बढ़ेगी

रांची: झारखण्ड की राजनीति में अयोध्या पर आया न्यायालय का फैसला क्या रंग लाता है, इस पर सरकार के सभी सूचना और अन्वेषण तंत्र काम कर रहे हैं, साथ ही साथ, भाजपा इसे भुनाने की जुगत में भी लगी है. लेकिन उसने अगर झारखण्ड में कोई फिर साम्प्रदाइक  खेल  खेलना शुरू किया तो, उसे सबसे पहले जदयू , झामुमो और आजसू के विरोध का सामना करना पडेगा. 
            अयोध्या फैसले के बाद जदयू के नेता बहुत सचेत हैं. ऐसे भी वे मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की राजनीति से तिलमिलाए हुए हैं. जदयू का एक भी प्रतिनिधि मुंडा मंत्रिमंडल में नहीं लिया जा रहा है. फिर बिहार में विधान सभा चुनाव में भाजपा की नई रणनिती का भी निर्माण अयोध्या फैसले के आधार पर किया जा रहाहै. 
            नीतीश कुमार ने अपने करीबियों को भाजपा की नई रणनीति पर नजर रखने के लिए लगा दिया  है. नीतीश कुमार को मुसलमानों के वोट का प्रतिशत घटने का भय पहले से ज्यादा हो गया है. वे नरेंद्र मोदी के प्रकोप से ज्यादा बड़ा प्रकोप  भाजपा की नई रणनीति और  उत्साह को मान रहे हैं. कहीं इस फैसले पर अगर भाजपा ने ज्यादा उछल-कूद की तो जदयू का चुनावी समीकरण ही गड़बड़ा जाएगा.
            भाजपा के एक नेता ने भाजपा हाई कमान से कहा है कि इस फैसले के बाद भाजपा को बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए. भाजपा चुनाव में अकेली क्लीन स्वीप कर सकती है.  इसकी भनक झारखण्ड जदयू तक पहुंची है. ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार चुनाव का दृश्य बदलेगा और उसका पूरा असर झारखण्ड पर भी पडेगा.
            झामुमो को भी मुसलमानों के वोट की सख्त जरूरत है, लेकिन भाजपा के नए अयोध्यायी तेवर से उसके अंदर खलबली मची हुई है. शिबू सोरेन तो शुरू से ही भाजपा से दूरी बनाये रखने के पक्षधर थे , लेकिन पुत्र हट के कारण उनको भाजपा से लिखित माफ़ी भी मांगना पड़ा और मुख्यमंत्री  पद की दावेदारी भी छोडनी पड़ी. वैसे अभी शिबू सोरेन अपने पुत्र हेमंत सोरेन की रजनीति से स्वयं खार खाए हुए हैं. पार्टी पर उनकी पकड़ बहुत कमजोर हो गई है और से इस हालात में अपने को मजबूर पा रहे हैं.