सोमवार, 9 मई 2011

झारखण्ड साहित्य संगम
३०७, हरिओम टावर, सर्कुलर रोड, रांची-मो.न. ९३०४४५३७९७
अध्यक्ष
दिलीप तेतरवे

दिनांक - १०.५.२०११

                                                                              प्रेस विज्ञप्ति


रांची. साहित्यकार दिलीप तेतरवे  ने मुखमंत्री अर्जुन मुंडा से मांग की  है कि अनधिकृत व विचलित निर्माण को चक्रवृद्धी शुल्क के माध्यम से नियमितीकरण  संबंधी झारखण्ड  अधिनियम २००१(अध्यादेश) को उनकी सरकार शीघ्र वापस  ले क्योंकि यह अधिनियम भेदभावपूर्ण  और बड़े  बिल्डरों के हितरक्षण के लिए बनाया गया है और इसका प्रथम लक्ष्य भारतीय जनतापार्टी के हरमू हाऊसिंग कालोनी में स्थित पार्टी मुख्यालय भवन को भी बचाना है. अगर अर्जुन मुंडा में और उनकी सरकार में, थोड़ी सी भी नैतिकता शेष है तो उसे  भेदभावपूर्ण और बड़े बिल्डरों के इशारे पर बनाये गए अध्यादेश तो तुरंत वापस लेनता चाहिए.

            श्री तेतरवे ने झारखण्ड विधान सभा के अध्यक्ष  सी पी सिंह  द्वारा इस अध्यादेश  पर दर्ज कराई गयी आपत्ति पर सहमति प्रकट करते हुए कहा है कि अगर इस अध्यादेश को वापस नहीं लिया गया तो उनकी संस्था हर उस स्थल पर कवि सम्मेलनों का आयोजन करेगा जहाँ अर्जुन मुंडा के बुलडोज़र ने ग़रीबों का आशियां उजाड़ा है, ताकि उनकी गलत  करवाई के सबंध में जनता को जागरूक  कर जन आन्दोलन की बुनियाद डाली जा सके  और गरीबों को,  अमीरों और कालाबाजारियों की मुंडा सरकार से मुक्ति दिलायी जा सके.
           श्री तेतरवे ने कहा है कि मुंडा को अपने पुत्रों के इलाज के लिए अमेरिका जाने से पहले यह सोचना चाहिए कि  उन बीमार, बूढ़े और लाचार  हो गए लोगों को राहत कहाँ मिलेगी, दवा कहाँ मिलेगी, भोजन कहाँ मिलेगा, जो उनके ख़ूनी बुलडोज़र के कारण बेघर और बेरोजगार हो गए हैं. कोई भी संवेदनशील व्यक्ति इस अमानवीय स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकता है. हम इस संवेदनहीन सरकार को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं.
          श्री तेतरवे ने राज्य के  सभी सामाजिक संगठनों, साहित्यिक संगठनों और राजनीतिक संगठनों से निवेदन किया है कि वे एकजुट जो कर अर्जुन मुंडा के  बुलडोज़र को रोकने के लिए जनांदोलन शुरू करें. उन्होंने जे एम एम  और आजसू से कहा है कि अगर वे सिर्फ सत्ता से चिपके रहने के लिए राजनीति कर रहे हैं तो, बेशक इस अध्यादेश के पक्ष में डटे  रहें और अगर उनमें  ग़रीबों के प्रति कुछ भी संवेदना शेष  है तो सरकार से अपने को अलग करें, क्योंकि दोनों ही पार्टियों के ज्यादातर समर्थक गरीब वर्ग के लोग हैं.

प्रचार सचिव
जिया जयदी          

सोमवार, 3 जनवरी 2011

झारखण्ड की शान दीपिका
























झारखण्ड की शान दीपिका
          झारखण्ड की सां दीपिका ने अचूक तीरंदाजी से झारखण्ड और देश का नाम राष्ट्रमंडल खेलों और  एशियाड  में रोशन किया. लोक सेवा समिति के सदस्य  दीपिका को झारखण्ड रत्न से सम्मानित करे स्वयं गौरव का अनुभव कर  रहे हैं. झारखण्ड के एक गरीब परिवार  में जन्म लेकर जिस दिलेरी के साथ उसने तीरंदाजी का कौशल सिखा और इस खेल में महरत हासिल की वह बहुत ही प्रेरणादायक है. उसकी कुछ उपलब्धियां :
        *राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक
        * फरवरी, २००९ में बंकोक में आयोजित एशियन आर्चरी ग्रेंड प्रिक्स में रजत पदक.
         * जुलाई,०९,अमेरिका, यूथ वर्ल्ड आर्चरी चैम्पिंशिप में स्वर्ण पदक
         * फ़रवरी, २०१०, बांग्लादेश, ११वीन सैफ गेम्स में टीम इवेंट में स्वर्ण    
            पदक.
          * मार्च, २०१०, बैंकाक, एशियन ग्रांड प्री, स्वर्ण पदक
          * अगुस्त, २०१०, अमेरिका, वर्ल्ड कप की टीम इवेंट में रजत पदक.
          लोक सेवा समिति सारे सदस्य  दीपिका के और उज्जवल भविष्य 
          की कामना करते हैं. 

 



















         

सोमवार, 8 नवंबर 2010

भारत का दिल जीत लिया ओबामा ने

          अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने अपनी भारत यात्रा को अनेक मामलों में यादगार बना दिया. उन्होंने भारतीयों का दिल जीत लिया. उनके भाषण में उनके दिल की बात थी जो भारत के दिल तक पहुंची. जिस महात्मा गाँधी को, जिस नेहरू को, हर दिन भारत के ही  साम्प्रदाइक  तत्वों द्वारा मनगढ़ंत इतिहास और झूठ के पुलिंदों के साथ आलोचना का शिकार बनाया जाता रहा है, उसी देश में ओबामा आते हैं और कह जाते हैं कि, अगर महात्मा गाँधी न होते तो मैं अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं होता. उन्होंने पकिस्तान में आतंकी गढ़ों को ध्वस्त करने की भी बात बड़ी साफगोई से की. उसने संसद में स्वामी विवेकानंद और डा. अम्बेदकर को स्मरण करते हुए हमारे देश के हर कोने की आबादी  पर भी सटीक बात की.       
         ओबामा ने न सिर्फ भारत को बल्कि पूरे विश्व को एक प्रभावपूर्ण  सन्देश दिया कि वह भारत के साथ उस हर संघर्ष में शामिल है जो जनतंत्र के हित से प्रेरित है. अमेरिका भारत के साथ आतंकवाद की समाप्ति के संघर्ष में भी शामिल है और ओबामा ने संसद में अपने भाषण का समापन 'जय हिंद' के बुलंद  नारे के साथ किया.
         यह तो सभी जानते हैं कि ओबामा एक कुशल वक्ता हैं, लेकिन उनके भाषण में सच्चाई घुली हुई थी और इस सच्चाई के पीछे स्पष्ट कारण हैं, भारत की आर्थिक  प्रगति, इसका एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरना,  भारत की क्रय शक्ति का प्रभावी हो जाना और सामरिक रूप से भारत का एक महत्वपूर्ण राष्ट्र के रूप में विकसित होना आदि.
           अमेरिका भारत को आज एक बड़े बाजार के रूप में देख रहा है, लेकिन भारत की ऎसी स्थिति की कल्पना भी कभी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों ने नहीं की होंगी. अगर अमेरिका को अपनी आर्थिक स्थिति को पुन: ठीक-ठाक करना है, तो उसे भारत के साथ-साथ  विश्व के अन्य देशों से भी  व्यापार बढ़ाना ही होगा. 
            भारत की इस प्रभावी  स्थिति को बनाने का  काम, 'करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह' ने किया और ओबामा ने उनके योगदान को  आकलित कर दिया, और  उनको  वह मुकाम मिल गया, जिसके लिए उन्होंने रात दिन, आलोचनाओं की बिना परवाह किये, मेहनत की और भारत को  एक ठोस आर्थिक आधार प्रदान किया.
             अनेक बार देश के वरिष्ठ नेताओं ने मनमोहन सिंह को महंगाई सिंह के नाम से पुकारते हुए उनकी तौहीन की, लेकिन किसी का सच्चा और सही काम छिप नहीं सकता है. 
              ओबामा  ने भारत के साथ बराबरी की बात की. लेकिन इसके पहले जब भी कोई  अमेरिकी राष्ट्रपति आते थे तो भारत उनसे आर्थिक सहयोग की कमाना करता था, लेकिन इस बार तो लेन-देन बराबरी के आधार करने की बात ओबामा ने की और भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में भी मान्यता दे दी.
            नेहरू ने जिस आधुनिक भारत का सपना देखा था, उसे मनमोहन सिंह ने शायद पूरा करने की जिम्मेदारी ले ली है. नेहरू के समय देश आर्थिक विपन्नता से जूझ रहा था. देश में आधारभूत संरचना की कमी थी, फिर भी नेहरू ने अपने बलबूते देश को अनेक बड़े उद्योग दिए और परमाणु के क्षेत्र में भारत को एक शक्ति बनाने के लिए कदम बढ़ाया.
         ओबामा  ने नेहरू के पंचतंत्र के सिद्धांत को भी याद किया. और चीन का बिना नाम लिए कह दिया की अमेरिका और भारत को उस हर देश में लोकतंत्र को मजबूत करने की जरूरत है, जहाँ लोकतंत्र नहीं है और जहां मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है. उन्होंने चीन के द्वारा भारत को १९६४ में  दिए गए धोखे की चर्चा तो नहीं की, लेकिन यह कह कर कि अमेरिका भारत को कभी धोखा नहीं देगा, चीन के धोखे को याद करा दिया.    

           भाजपा ने अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषण का स्वागत किया है, लेकिन भाजपा के ही एक नेता रूढी ने ओबामा की यात्रा के ठीक पूर्व ओबामा की कटु शब्दों में आलोचना की. भाजपा ने इसके पहले, कम्युनिस्टों के साथ मिल कर भारत-अमेरिका परमाणु  करार की भी कटु आलोचना की थी और मनमोहन सिंह  की सरकार को गिराने की चेष्टा की थी. भाजपा को आज इस बात की सीख लेनी चाहिए कि जहाँ राष्ट्र हित का सवाल हो वहां मात्र विरोध के लिए राजनीति नहीं करनी चाहिए. अगर भाजपा ने देश में साम्प्रदाइकता का  
तानाबाना नहीं बुना होता तो आज कश्मीर में भी अलगाववादी आतंकी  पाँव नहीं जमा सकते थे. उम्मीद है कि ओबामा के आतंकवाद  के खिलाफ जंग की बात के बाद आतंकियों  के  नापाक पांव उखड़ने शुरू हो जायेंगे, हालाँकि भारत को उनके खिलाफ खुली जंग करनी होगी.  
                  

सोमवार, 1 नवंबर 2010

पत्रकारिता के बदलते रंग

                         कल की पत्रकारिता और आज की पत्रकारिता में बहुत अंतर आ गया है. पत्रकारिता के बुनियादी तत्वों में भी बदलाव आ गए  हैं. लेकिन,बदलाव की दिशा ठीक नहीं कही जा सकती है. यह बात जरूर है कि तकनीकी तौर पर पत्रकारिता में बहुत विकास हुआ है. समाचार सम्प्रेषण की गति बहुत तेज हुई है. अखबारों की बात करें तो उनका पृष्ठ संयोजन, तस्वीरों की चमक-दमक, छपाई और उनका 'ग्लैमर'  भी उनकी प्रगति को दर्शाते  हैं.
            अगर टीवी माध्यम की बात करें तो उस पर समाचारों ने एक चासनीदार नया कलेवर प्राप्त कर लिया है. कुल मिला कर,  तकनीकी प्रगति को नजरअंदाज कर दें, तो पत्रकारिता के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. पत्रकारिता का वर्तमान युग अवसाद पैदा करने वाला और बहुत हद तक नकारात्मक है.यह बहुत हद तक व्यक्तिगत  लेखन की ओर भी अग्रसर भी  हो रहा है.           
         कल और आज की पत्रकारिता में अंतर जानने के लिए आवश्यक  है कि हम पत्रकारिता की परिभाषा को सर्वप्रथम  देखें और उसके तत्वों का विश्लेषण करें. पत्रकारिता के अंतर्गत सूचनाओं का संकलन, समाचार लेखन, समाचार चयन, संपादन और सम्प्रेषण  प्रमुख कार्य हैं. पत्रकारिता का मूल  उत्पादन समाचार है. इसलिए समाचार  की परिभाषा ही पत्रकारिता की सही दिशा और दशा का परिचायक है.
           समाचार की सबसे अच्छी  वैज्ञानिक परिभाषा इस प्रकार है- समाचार वह आलेख है जो परिवर्तन को दर्शाता है और यह आलेख निश्चित रूप से जन हित में होना चाहिए. यानि, पत्रकारिता के दो स्पष्ट तत्व हैं:-
        १. समाचार परिवर्तन को दर्शाने वाला आलेख और,
        २. यह आलेख निश्चित रूप से जनहित में होना चाहिए. 
       परिवर्तन के तीन मुख्य चरण हैं:
         १. धनात्मक परिवर्तन, अर्थात प्रगति;
         २ ऋणनात्मक परिवर्तन, अर्थात अधोगति या अप्रगति
         ३. परिवर्तनहीनता जिसे अंग्रेजी में स्टैगनेशन  कहते हैं, अर्थात यथास्थिति. 
            अब हम जनहित की बात करें तो इस तत्व का अर्थ है कि समाचार अधिसंख्यक लोगों  के लिए हितकारी हो, देश हित में हो, मानवता के हित में हो. 
            जिस समाचार आलेख में ये दो तत्व न हों तो उस आलेख तो समाचार नहीं कह सकते हैं. पत्रकारिता की स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि कोई स्वहित में या मुद्रा लोभ में आदेशित लेखन कर,  पत्रकारिता के मूल तत्वों को समाप्त कर दे. ऐसा लेखन न तो जनहित में है और न लोकतंत्र के हित में. पत्रकारिता की स्वतंत्रता के साथ जुड़े दायित्यों  पर भी आवश्यकरूप से  ध्यान देने  की आवश्यकता है.  से  एक आम  उदाहरण लें- एक बार एक व्यक्ति देश के एक अखबार का, राजनैतिक समर्थन से सम्पादक बन जाता है, और वह उस अखबार में अपने राजनैतिक आकाओं के हित का साधन करता है. कुछ वर्ष बाद, वह उसी राजनैतिक आकाओं की पार्टी का नेता बन जाता है. ऐसा प्रसंग आज की  पत्रकारिता में एक आम प्रसंग बन गया है. अब अगर उसके तथाकथित पत्रकारिता को देखें तो पायेंगे कि उसने अपनी कलम से जो कुछ भी लिखा, उसका उद्देश्य तो स्वार्थसाधन ही था. ऎसी स्थिति में हम यही कह सकते हैं कि उसने पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों का पालन नहीं किया और हकीकत में पत्रकारिता का दुरुपयोग किया. उसकी कथित पत्रकारिता को हम दुष्प्रचार या 'प्रोपगंडा' कह सकते हैं. जन विरोधी भी कह सकते हैं.
             कल की पत्रकारिता की विश्वसनीयता और आज की पत्रकारिता की विश्वसनीयता के स्तर में भी बहुत अंतर है. आज की पत्रकारिता की विश्वसनीयता गिरी है. कल की पत्रकारिता एक मिशन  थी, आज की पत्रकारिता एक पेशा बन कर रह गई है.  इसे सम्हालने का प्रयास भी कुछ स्तर पर हुआ है, लेकिन प्रयास में सामूहिकता की कमी के कारण यह प्रयास लगभग प्रभावहीन है.
           प्रत्रकारिता पर व्यावसायिकता  हावी है. समाचार बाजार में बिकने वाली आम सामग्री की तरह एक सामग्री बन गया है. जो अखबार और टीवी पहले दूसरों को ही प्रचार देते थे या स्वयं प्रचार के माध्यम थे आज उनको अपने 'सर्वश्रेष्ठ' होने का प्रचार करना पड़ता  है. वे अपने प्रचार के लिए बहुत बड़ा बजट बनाते हैं. बाजार  से व्यावसायिक विज्ञापन पाने के लिए यानि अधिकाधिक धन बटोरने के लिए, समाचार पत्रों और टीवी समाचार चैनलों में जंग चलती रहती है. सब के सब टीआरपी के बढ़ाने के लिए समाचारों को इस्तेमाल करते हैं. फलस्वरुप, सनसनीखेज समाचारों के लिखने का प्रचलन बहुत बढ़ गया है. समाचार चैनलों पर आम तौर से समाचार कम और दूसर चैनलों ले उधर लिए गए बसी मनोरंजन के कार्यक्रम ज्यादा दिखाए जाते हैं, और समाचार स्क्रौल में सिमटा सकुचा सा नजर आता है.
        दूसरी ओर,  स्टिंग के द्वारा पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े घोटालों को उजागर किया गया है. यह आधुनिक  पत्रकारिता की एक नई विधा है, लेकिन अनेक बार इसके दुरूपयोग की खबरें भी आयी हैं. यह विधा नई तकनीक की देन है.          पत्रकारिता में  नैतिकता का भी ह्रास हो रहा है. पत्रकारिता में जब हम नैतिकता की बात करते हैं तो, हम मुख्यरूप से  इन बिन्दुओं की ओर ध्यान देते हैं. लेकिन यह विधा बहुत प्रभावी  साबित हुई है. सारी खामियों के बावजूद आधुनिक पत्रकारिता ने वर्तमान युग की सबसे बड़ी महामारी भ्रष्टाचार से लड़ने का जो काम किया है, वह काबिले तारीफ़ है.

         १ . पत्रकारिता  सत्यनिष्ठ हो;
         २. जनहित में हो; 
         ३. वीभत्स  समाचार या दृश्यों  को इस प्रकार लिखा और दर्शाया  जाए कि उससे किसी के दिल दिमाग पर बुरा असर न पड़े.
         ४. बाल अपराधियों या बच्चों पर हुए अपराध की  घटनाओं में बच्चों की तस्वीर या उनका नाम पता न प्रकाशित केए जायें. महिलाओं पर हुए अत्याचार या अपराध को लिखने हुए पीड़िता की तस्वीर या पता न प्रकाशित किया जाये;
        ५.किसी अपराधी के परिवार के लोगों या उनके मित्रों  को समाचार में बेवजह न शामिल किया जाये;
       ६. सांप्रदायिक दंगों पर लेखन करते हुए समुदायों या जातियों का वर्णन न किया जाये और दंगा भड़काने वाले आलेख न छापे जायें.
       ७. एक सीमा तक, किसी की निजता में घुसपैठ न की जाये. अगर किसी कि निजता में प्रवेश करना जनहित में आवश्यक हो तो प्रवेश किया जा सकता है, लेकिन यह कार्य तभी सम्पादित किया जाना चाहिए जब यह बात तथ्यपूर्ण ढंग से स्पष्ट हो कि लक्ष्य  व्यक्ति अपनी निजता में गैर कानूनी काम कर रहा है.  
       ८.  व्यावसायिकता के लक्ष्यों की प्राप्ति के क्रम में पत्रकारिता के नैतिक सिद्धांतों की बलि न चढ़ाई जाए.    इनके अलावा भी पत्रकारिता की  नैतिकता  और भी आयाम हैं.
        अगर हम इन आयामों की और ध्यान दें तो पायेंगे की पत्रकारिता में अब इनकी ओर ज्यादा  ध्यान नहीं दिया जाता है. कुछ ही दिनों पहले  एक माध्यम पर एक आदमी को आग लगा कर मर ने  के दृश्यों को दिखलाया गया, जबकि उन दृश्यों को संकलित करने वाले व्यक्ति को देश के कानून के  अंतर्गत  अपराध में सहयोग  का दोषी पाते हुए दंड दिया जाना चाहिए था. मुंबई में आतंकी हमले के समय जीवंत कमांडो कार्यवाही को दिखलाने   के कारण आतंकियों  को  मदद मिल गयी.
     अनेक माध्यमों  ने  आतंकवादियों, देश  की अखण्डता के विरोधियों, सम्प्रदाइक  तत्वों आदि को बहुत प्रचार दे कर आम लोगों में भ्रम और दहशत पैदा करने का भी काम किया है.
      लेकिन  आशा की जानी चाहिए की  पत्रकारिता में अवसाद का यह युग समाप्त होगा और फिर एक बार पत्रकारिता  अपने मूल धर्म के साथ विकसित होगी  और देश में जनहित का  मिसाल कायम करेगी. यह  साफ़ दिख रहा है कि आने वाली पढ़ी सामप्रदायिकता और सनसनीखेज पत्रकारिता से ऊब गई है, और वह उसमें बदलाव चाहती है. यह एक शुभ संकेत है. 
         

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

आखिर मुंडा जी ने सरकार बना ली और झामुमो में बगावत

झारखण्ड  मुक्ति मोर्चा के चार विधायकों ने स्पष्ट  कर दिया है कि वे मौक़ा मिलते ही मुंडा सरकार को गिरा देंगें और सरकार की  छवि पर कुछ दागी मंत्री  भी दाग लगाने के लिए मौजूद हैं.
       झामुमो के विधायक साईमन मरांडी, सीता सोरेन, टेकलाल महतो और लोबिन हेम्ब्रोम ने विद्रोह का झंडा ऊठा लिया है. साईमन मरांडी ने कहा कि उनको जब मौक़ा मिलेगा वे सरकार को गिरा देंगें. वे सरकारी पक्ष में होते हुए भी विपक्ष के साथ रहेंगे. वे अपनी सदस्यता बचाते हुए मुंडा सरकार पर निशाना साधने से कभी चूकेंगे नहीं. उन्होंने कहा कि मोर्चा के वरिष्ठ सदस्यों को दरकिनार कर, सिबू सोरेन ने  अपने बेटे के हाथ में पार्टी को थमा दिया है. क्या पार्टी का गठन सिबू सोरेन के बेटे के लिए हुआ था.
        सिबू सोरेन की बहु और विधायक सीता सोरेन ने सिर्फ इतना ही कहा कि अब जब मनमानी हो ही गई है तो  देखिये आगे और क्या-क्या होता है. पिछली बार जब सिबू सोरेन को अपना मुख्यमंत्री पद बचाने के लिए विधान सभा का चुनाव लड़ना था तब सीता सोरेन ने  सिबू सोरेन के लिए सीट खाली नहीं की थी. इस बार उनको इसी अपराध में मन्त्री पद से वंचित कर दिया गया. मंत्रियों के शपथ ग्रहण  समारोह में भी सीता  सोरेन और असंतुष्ट अन्य तीन विधायकों को आने का आमंत्रण भी नहीं दिया गया.
      जहाँ तक भाजपा में असंतुष्ट विधायकों और नेताओं का सवाल है, वे किसी भी दिन  मुंडा सरकार के लिए संकट खड़ा कर सकते हैं. भाजपा की परम्परा है कि वे जब तक उसे किसी नेता से लाभ मिल रहा है उसे पूरा सम्मान और पावर दिया जाता है और काम निकलते ही उनको यूज एंड थ्रो के सिद्धांत  पर दरकिनार कर दिया जाता है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रघुवर दास जब तक यूस के लायक थे पार्टी में उनकी तूती बोलती थी लेकिन जैसे ही वे भाजपा अध्यक्ष नितिन  गडकरी और अर्जुन मुंडा से टकराए और अडवाणी की मदद से मुख्यमंत्री बनने का प्रयास किया, वे पार्टी में अब एक  साधारण कार्यकर्ता के अलावा कुछ भी नहीं रह गए हैं. उनके गुट के भाजपाई अभी वेट और वाच की स्थिति में हैं. उनका विश्वास है कि नितिन गडकरी ज्यादा दिनों तक भाजपा के अध्यक्ष नहीं रह पायेंगे. उनको लग रहा है कि गडकरी की तानाशाही के कारण बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. सी पी ठाकुर ने इस्तीफा दे दिया है.
            गडकरी की नीति है कि जितनी जल्दी हो सके सीनियर नेताओं का मनोबल गिरा दिया जाये और पार्टी में अपना एक क्षत्र राज कायम कर लिया जाये. पार्टी के वरिष्ठ नेता इस रणनीति को समझ चुके हैं. भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर गडकरी के खिलाफ जो मोर्चेबंदी शुरू हुई है उसका नतीजा बिहार चुनाव के साथ सामने आ जाएगा. कुल मिला कर अब अर्जुन मुंडा के सामने एक ही उपाय बचा है वह है बोर्ड और निगमों की राबड़ी  असंतुष्टों को के हाथों में डालना, लेकिन वे राबड़ी से मानेंगे नहीं.          

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

बिहार चुनाव: दागियों को टिकट देने में भाजपा सबसे आगे

पटना: बिहार में चुनावी घमासान शुरू हो गया है और दागियों को टिकट देने में भाजपा ने तगड़ी लीड ले ली  है.  प्रमुख दलों, भाजपा, जदयू, राजद, लोजपा और  कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची में कुल ८० उम्मीदवार दागी हैं और उनमें से ४१ भाजपा के हैं. 
           दागियों को टिकट दे कर भाजपा, जदयू, राजद,  और लोजपा  ने अपना-अपना परिचय बनाये रखा है कि  वे जो बोलते हैं, उस पर कभी चलते नहीं. वैसे, इन तीनों दलों की स्पष्ट मान्यता है कि दल का टिकट उसे ही दो, जो  जीतने का दमखम रखता हो. नीतीश का तो भाषण ही शुरू होता है, गुंडा राज मिटाने के संकल्प से लेकिन वे सहारा तो हमेशा से लेते हैं दागियों का.  लगता है कि इस बार नीतीश ज्यादा गंभीर नहीं हैं, लेकिन उनकी सहयोगी भाजपा ने दागियों को रिकार्ड संख्या में टिकट दे कर उनका काम पूरा कर दिया है.
        नीतीश ने पिछले चुनाव में जिन-जिन दागियों को अपने 'साफ़ सुथरे' दल का टिकट दिया था, उनमें  से एक ने विधायक बनते ही जो तमाशा पटना के एक होटल में किया  था, उसका दूसरा मिसाल मिलना मुस्किल है.
          राजद और लोजपा तो दागियों की पुरानी शरण स्थली है ही और पासवान  लालू "वीनिंग उम्मीदवार" को ही टिकट देते हैं . यही कारण है कि लालू जी ने  चुनाव के पहले वे जेल जा कर शहाबुद्दीन साहब  से मिल आये. उनकी सलाह से उन्होंने लगभग चार तगड़े उम्मीदवार तय किये हैं. इस बार लालू जी के ददन पहलवान ने राजद का दामन छोड़ कर अपना अलग अखाड़ा जमा लिया है. उनके पास ताकत है तो फिर पार्टी की चिंता क्या करना. वे तो हमेशा ताकत के बल पर राजनीति करने में माहिर हैं.
           लालू जी इस बार ताकतवर उम्मीदवारों के मामले में पिछड़ गए हैं. उनके  ६५ उम्मीदवारों में मात्र नौ ही दागी हैं.  कांग्रेस ने भी कुछ तगड़े  उम्मीदवार खड़े किये हैं या तगड़े  लोगों के सगे या पत्नी को चुनाव लड़वाने के मूड में हैं. लवली आनंद कांग्रेस में हैं, जो जेल में सजा काट रहे  पूर्व सांसद आनंद मोहन की पत्नी है. वह चुनाव लड़ रही हैं. कांग्रेस के ७७ उम्मीदवारों में सिर्फ पांच दागी हैं.  
        अपने दल को सर्वादिक सभ्य  मानने  वाली भाजपा ने सर्वाधिक  दागियों को टिकट दिए हैं. भाजपा के ८७ उम्मीदवारों में ४१ दागी हैं और कुछ तो उसकी साम्प्रदायिकता  तो जीवंत रखने वाले उम्मीदवार हैं. सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ कर वोट लेने में माहिर भाजपा ने वैसे उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जो सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने के लिए इस चुनाव में प्रभावी  भूमिका निभायेंगे. 
       लोजपा की ३८ उम्मीदवारों की  पहली सूची में ८ उम्मीदवार दागी हैं. लगता है की पासवान जी को भी इस बार पहलवान छाप  के नेता नहीं मिले. 

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

ज्योतिषियों के चक्कर में फंसी मुंडा सरकार

रांची: अर्जुन मुंडा सरकार ज्योतिषियों के चक्कर में फंस गयी है या अपने ही जाल में उलझ गई है-इन्हीं दो पहलुओं के बीच इस सरकार की नैया डगमगा रही है. मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा का कहना है कि वे इस बार कोई 'रिस्क' नहीं लेना चाहते हैं, इस लिए वे  ज्योतिषियों से मिले और आगामी आठ तारीख़ को उनकी सलाह पर वे मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे. दकियानूसी का इससे बड़ा उदाहरण  भारतीय राजनीति में  कहीं नहीं मिलेगा.
         लोग प्रश्न करने लगे हैं कि क्या अर्जुन मुंडा अपनी सरकार की सलामती के लिए कोई राज ज्योतिषी तो नियुक्त नहीं करेंगे. क्या अर्जुन मुंडा मंत्रिमंडल की बैठक की तिथियाँ भी ज्योतिषियों की सलाह पर निर्धारित करेंगे. वस्तुतः ज्योतिषीय सलाह के नाम पर अर्जुन मुंडा ज्यादा से ज्यादा समय चाहते हैं, ताकि वे अपने जहाज से उड़ते-भागते विधायकों को सहेज सकें और कम से कम पांच दस माह राज सुख  भोग सकें. वे  समय चाहते हैं ताकि शिबू सोरेन और उनके पुत्र हेमंत सोरेन को भी पटरी पर ला सकें. रह-रह कर शिबू सोरेन का ह्रदय मुख्यमंत्री बनने के लिए लालायित होने लगता है. जदयू भी विद्रोह के मूड में है तो आजसू में भी कम उठा-पटक नहीं चल रही है.  आजसू सुप्रिमो सुदेश महतो के लिए अपने कुनबे को सम्हालना मुश्किल   हो गया है. 
         हाल में संविधान का हवाला देते हुए राज्यपाल एमओएच फारूख ने मुख्यमंत्री  को पत्र लिख कर कहा है कि वे आठ तारीख़ तक अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर लें. लेकिन हालात कहते हैं कि मुंडा अपने मंत्रिमंडल का शायद ही विस्तार कर पाएं. भाजपा के आरएसएसवादी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मुंडा विरोधी रघुवर दास के पर जिस तरह कतरने की कोशिश की है, उसका परिणाम पार्टी को भुगतना ही पडेगा. आरएसएस से भाजपा में आये नेता भी गैर आरएसएसवादी अर्जुन मुंडा के बढ़ते कद और प्रभाव  को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. 

-जिया