अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने अपनी भारत यात्रा को अनेक मामलों में यादगार बना दिया. उन्होंने भारतीयों का दिल जीत लिया. उनके भाषण में उनके दिल की बात थी जो भारत के दिल तक पहुंची. जिस महात्मा गाँधी को, जिस नेहरू को, हर दिन भारत के ही साम्प्रदाइक तत्वों द्वारा मनगढ़ंत इतिहास और झूठ के पुलिंदों के साथ आलोचना का शिकार बनाया जाता रहा है, उसी देश में ओबामा आते हैं और कह जाते हैं कि, अगर महात्मा गाँधी न होते तो मैं अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं होता. उन्होंने पकिस्तान में आतंकी गढ़ों को ध्वस्त करने की भी बात बड़ी साफगोई से की. उसने संसद में स्वामी विवेकानंद और डा. अम्बेदकर को स्मरण करते हुए हमारे देश के हर कोने की आबादी पर भी सटीक बात की.
ओबामा ने न सिर्फ भारत को बल्कि पूरे विश्व को एक प्रभावपूर्ण सन्देश दिया कि वह भारत के साथ उस हर संघर्ष में शामिल है जो जनतंत्र के हित से प्रेरित है. अमेरिका भारत के साथ आतंकवाद की समाप्ति के संघर्ष में भी शामिल है और ओबामा ने संसद में अपने भाषण का समापन 'जय हिंद' के बुलंद नारे के साथ किया.
यह तो सभी जानते हैं कि ओबामा एक कुशल वक्ता हैं, लेकिन उनके भाषण में सच्चाई घुली हुई थी और इस सच्चाई के पीछे स्पष्ट कारण हैं, भारत की आर्थिक प्रगति, इसका एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरना, भारत की क्रय शक्ति का प्रभावी हो जाना और सामरिक रूप से भारत का एक महत्वपूर्ण राष्ट्र के रूप में विकसित होना आदि.
अमेरिका भारत को आज एक बड़े बाजार के रूप में देख रहा है, लेकिन भारत की ऎसी स्थिति की कल्पना भी कभी अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों ने नहीं की होंगी. अगर अमेरिका को अपनी आर्थिक स्थिति को पुन: ठीक-ठाक करना है, तो उसे भारत के साथ-साथ विश्व के अन्य देशों से भी व्यापार बढ़ाना ही होगा.
भारत की इस प्रभावी स्थिति को बनाने का काम, 'करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह' ने किया और ओबामा ने उनके योगदान को आकलित कर दिया, और उनको वह मुकाम मिल गया, जिसके लिए उन्होंने रात दिन, आलोचनाओं की बिना परवाह किये, मेहनत की और भारत को एक ठोस आर्थिक आधार प्रदान किया.
अनेक बार देश के वरिष्ठ नेताओं ने मनमोहन सिंह को महंगाई सिंह के नाम से पुकारते हुए उनकी तौहीन की, लेकिन किसी का सच्चा और सही काम छिप नहीं सकता है.
ओबामा ने भारत के साथ बराबरी की बात की. लेकिन इसके पहले जब भी कोई अमेरिकी राष्ट्रपति आते थे तो भारत उनसे आर्थिक सहयोग की कमाना करता था, लेकिन इस बार तो लेन-देन बराबरी के आधार करने की बात ओबामा ने की और भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में भी मान्यता दे दी.
नेहरू ने जिस आधुनिक भारत का सपना देखा था, उसे मनमोहन सिंह ने शायद पूरा करने की जिम्मेदारी ले ली है. नेहरू के समय देश आर्थिक विपन्नता से जूझ रहा था. देश में आधारभूत संरचना की कमी थी, फिर भी नेहरू ने अपने बलबूते देश को अनेक बड़े उद्योग दिए और परमाणु के क्षेत्र में भारत को एक शक्ति बनाने के लिए कदम बढ़ाया.
ओबामा ने नेहरू के पंचतंत्र के सिद्धांत को भी याद किया. और चीन का बिना नाम लिए कह दिया की अमेरिका और भारत को उस हर देश में लोकतंत्र को मजबूत करने की जरूरत है, जहाँ लोकतंत्र नहीं है और जहां मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है. उन्होंने चीन के द्वारा भारत को १९६४ में दिए गए धोखे की चर्चा तो नहीं की, लेकिन यह कह कर कि अमेरिका भारत को कभी धोखा नहीं देगा, चीन के धोखे को याद करा दिया.
भाजपा ने अमेरिका के राष्ट्रपति के भाषण का स्वागत किया है, लेकिन भाजपा के ही एक नेता रूढी ने ओबामा की यात्रा के ठीक पूर्व ओबामा की कटु शब्दों में आलोचना की. भाजपा ने इसके पहले, कम्युनिस्टों के साथ मिल कर भारत-अमेरिका परमाणु करार की भी कटु आलोचना की थी और मनमोहन सिंह की सरकार को गिराने की चेष्टा की थी. भाजपा को आज इस बात की सीख लेनी चाहिए कि जहाँ राष्ट्र हित का सवाल हो वहां मात्र विरोध के लिए राजनीति नहीं करनी चाहिए. अगर भाजपा ने देश में साम्प्रदाइकता का
तानाबाना नहीं बुना होता तो आज कश्मीर में भी अलगाववादी आतंकी पाँव नहीं जमा सकते थे. उम्मीद है कि ओबामा के आतंकवाद के खिलाफ जंग की बात के बाद आतंकियों के नापाक पांव उखड़ने शुरू हो जायेंगे, हालाँकि भारत को उनके खिलाफ खुली जंग करनी होगी.
सोमवार, 8 नवंबर 2010
सोमवार, 1 नवंबर 2010
पत्रकारिता के बदलते रंग
कल की पत्रकारिता और आज की पत्रकारिता में बहुत अंतर आ गया है. पत्रकारिता के बुनियादी तत्वों में भी बदलाव आ गए हैं. लेकिन,बदलाव की दिशा ठीक नहीं कही जा सकती है. यह बात जरूर है कि तकनीकी तौर पर पत्रकारिता में बहुत विकास हुआ है. समाचार सम्प्रेषण की गति बहुत तेज हुई है. अखबारों की बात करें तो उनका पृष्ठ संयोजन, तस्वीरों की चमक-दमक, छपाई और उनका 'ग्लैमर' भी उनकी प्रगति को दर्शाते हैं.
अगर टीवी माध्यम की बात करें तो उस पर समाचारों ने एक चासनीदार नया कलेवर प्राप्त कर लिया है. कुल मिला कर, तकनीकी प्रगति को नजरअंदाज कर दें, तो पत्रकारिता के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. पत्रकारिता का वर्तमान युग अवसाद पैदा करने वाला और बहुत हद तक नकारात्मक है.यह बहुत हद तक व्यक्तिगत लेखन की ओर भी अग्रसर भी हो रहा है.
कल और आज की पत्रकारिता में अंतर जानने के लिए आवश्यक है कि हम पत्रकारिता की परिभाषा को सर्वप्रथम देखें और उसके तत्वों का विश्लेषण करें. पत्रकारिता के अंतर्गत सूचनाओं का संकलन, समाचार लेखन, समाचार चयन, संपादन और सम्प्रेषण प्रमुख कार्य हैं. पत्रकारिता का मूल उत्पादन समाचार है. इसलिए समाचार की परिभाषा ही पत्रकारिता की सही दिशा और दशा का परिचायक है.
समाचार की सबसे अच्छी वैज्ञानिक परिभाषा इस प्रकार है- समाचार वह आलेख है जो परिवर्तन को दर्शाता है और यह आलेख निश्चित रूप से जन हित में होना चाहिए. यानि, पत्रकारिता के दो स्पष्ट तत्व हैं:-
१. समाचार परिवर्तन को दर्शाने वाला आलेख और,
२. यह आलेख निश्चित रूप से जनहित में होना चाहिए.
परिवर्तन के तीन मुख्य चरण हैं:
१. धनात्मक परिवर्तन, अर्थात प्रगति;
२ ऋणनात्मक परिवर्तन, अर्थात अधोगति या अप्रगति
३. परिवर्तनहीनता जिसे अंग्रेजी में स्टैगनेशन कहते हैं, अर्थात यथास्थिति.
अब हम जनहित की बात करें तो इस तत्व का अर्थ है कि समाचार अधिसंख्यक लोगों के लिए हितकारी हो, देश हित में हो, मानवता के हित में हो.
जिस समाचार आलेख में ये दो तत्व न हों तो उस आलेख तो समाचार नहीं कह सकते हैं. पत्रकारिता की स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि कोई स्वहित में या मुद्रा लोभ में आदेशित लेखन कर, पत्रकारिता के मूल तत्वों को समाप्त कर दे. ऐसा लेखन न तो जनहित में है और न लोकतंत्र के हित में. पत्रकारिता की स्वतंत्रता के साथ जुड़े दायित्यों पर भी आवश्यकरूप से ध्यान देने की आवश्यकता है. से एक आम उदाहरण लें- एक बार एक व्यक्ति देश के एक अखबार का, राजनैतिक समर्थन से सम्पादक बन जाता है, और वह उस अखबार में अपने राजनैतिक आकाओं के हित का साधन करता है. कुछ वर्ष बाद, वह उसी राजनैतिक आकाओं की पार्टी का नेता बन जाता है. ऐसा प्रसंग आज की पत्रकारिता में एक आम प्रसंग बन गया है. अब अगर उसके तथाकथित पत्रकारिता को देखें तो पायेंगे कि उसने अपनी कलम से जो कुछ भी लिखा, उसका उद्देश्य तो स्वार्थसाधन ही था. ऎसी स्थिति में हम यही कह सकते हैं कि उसने पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों का पालन नहीं किया और हकीकत में पत्रकारिता का दुरुपयोग किया. उसकी कथित पत्रकारिता को हम दुष्प्रचार या 'प्रोपगंडा' कह सकते हैं. जन विरोधी भी कह सकते हैं.
कल की पत्रकारिता की विश्वसनीयता और आज की पत्रकारिता की विश्वसनीयता के स्तर में भी बहुत अंतर है. आज की पत्रकारिता की विश्वसनीयता गिरी है. कल की पत्रकारिता एक मिशन थी, आज की पत्रकारिता एक पेशा बन कर रह गई है. इसे सम्हालने का प्रयास भी कुछ स्तर पर हुआ है, लेकिन प्रयास में सामूहिकता की कमी के कारण यह प्रयास लगभग प्रभावहीन है.
प्रत्रकारिता पर व्यावसायिकता हावी है. समाचार बाजार में बिकने वाली आम सामग्री की तरह एक सामग्री बन गया है. जो अखबार और टीवी पहले दूसरों को ही प्रचार देते थे या स्वयं प्रचार के माध्यम थे आज उनको अपने 'सर्वश्रेष्ठ' होने का प्रचार करना पड़ता है. वे अपने प्रचार के लिए बहुत बड़ा बजट बनाते हैं. बाजार से व्यावसायिक विज्ञापन पाने के लिए यानि अधिकाधिक धन बटोरने के लिए, समाचार पत्रों और टीवी समाचार चैनलों में जंग चलती रहती है. सब के सब टीआरपी के बढ़ाने के लिए समाचारों को इस्तेमाल करते हैं. फलस्वरुप, सनसनीखेज समाचारों के लिखने का प्रचलन बहुत बढ़ गया है. समाचार चैनलों पर आम तौर से समाचार कम और दूसर चैनलों ले उधर लिए गए बसी मनोरंजन के कार्यक्रम ज्यादा दिखाए जाते हैं, और समाचार स्क्रौल में सिमटा सकुचा सा नजर आता है.
दूसरी ओर, स्टिंग के द्वारा पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े घोटालों को उजागर किया गया है. यह आधुनिक पत्रकारिता की एक नई विधा है, लेकिन अनेक बार इसके दुरूपयोग की खबरें भी आयी हैं. यह विधा नई तकनीक की देन है. पत्रकारिता में नैतिकता का भी ह्रास हो रहा है. पत्रकारिता में जब हम नैतिकता की बात करते हैं तो, हम मुख्यरूप से इन बिन्दुओं की ओर ध्यान देते हैं. लेकिन यह विधा बहुत प्रभावी साबित हुई है. सारी खामियों के बावजूद आधुनिक पत्रकारिता ने वर्तमान युग की सबसे बड़ी महामारी भ्रष्टाचार से लड़ने का जो काम किया है, वह काबिले तारीफ़ है.
१ . पत्रकारिता सत्यनिष्ठ हो;
२. जनहित में हो;
३. वीभत्स समाचार या दृश्यों को इस प्रकार लिखा और दर्शाया जाए कि उससे किसी के दिल दिमाग पर बुरा असर न पड़े.
४. बाल अपराधियों या बच्चों पर हुए अपराध की घटनाओं में बच्चों की तस्वीर या उनका नाम पता न प्रकाशित केए जायें. महिलाओं पर हुए अत्याचार या अपराध को लिखने हुए पीड़िता की तस्वीर या पता न प्रकाशित किया जाये;
५.किसी अपराधी के परिवार के लोगों या उनके मित्रों को समाचार में बेवजह न शामिल किया जाये;
६. सांप्रदायिक दंगों पर लेखन करते हुए समुदायों या जातियों का वर्णन न किया जाये और दंगा भड़काने वाले आलेख न छापे जायें.
७. एक सीमा तक, किसी की निजता में घुसपैठ न की जाये. अगर किसी कि निजता में प्रवेश करना जनहित में आवश्यक हो तो प्रवेश किया जा सकता है, लेकिन यह कार्य तभी सम्पादित किया जाना चाहिए जब यह बात तथ्यपूर्ण ढंग से स्पष्ट हो कि लक्ष्य व्यक्ति अपनी निजता में गैर कानूनी काम कर रहा है.
८. व्यावसायिकता के लक्ष्यों की प्राप्ति के क्रम में पत्रकारिता के नैतिक सिद्धांतों की बलि न चढ़ाई जाए. इनके अलावा भी पत्रकारिता की नैतिकता और भी आयाम हैं.
अगर हम इन आयामों की और ध्यान दें तो पायेंगे की पत्रकारिता में अब इनकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है. कुछ ही दिनों पहले एक माध्यम पर एक आदमी को आग लगा कर मर ने के दृश्यों को दिखलाया गया, जबकि उन दृश्यों को संकलित करने वाले व्यक्ति को देश के कानून के अंतर्गत अपराध में सहयोग का दोषी पाते हुए दंड दिया जाना चाहिए था. मुंबई में आतंकी हमले के समय जीवंत कमांडो कार्यवाही को दिखलाने के कारण आतंकियों को मदद मिल गयी.
अनेक माध्यमों ने आतंकवादियों, देश की अखण्डता के विरोधियों, सम्प्रदाइक तत्वों आदि को बहुत प्रचार दे कर आम लोगों में भ्रम और दहशत पैदा करने का भी काम किया है.
लेकिन आशा की जानी चाहिए की पत्रकारिता में अवसाद का यह युग समाप्त होगा और फिर एक बार पत्रकारिता अपने मूल धर्म के साथ विकसित होगी और देश में जनहित का मिसाल कायम करेगी. यह साफ़ दिख रहा है कि आने वाली पढ़ी सामप्रदायिकता और सनसनीखेज पत्रकारिता से ऊब गई है, और वह उसमें बदलाव चाहती है. यह एक शुभ संकेत है.
अगर टीवी माध्यम की बात करें तो उस पर समाचारों ने एक चासनीदार नया कलेवर प्राप्त कर लिया है. कुल मिला कर, तकनीकी प्रगति को नजरअंदाज कर दें, तो पत्रकारिता के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है. पत्रकारिता का वर्तमान युग अवसाद पैदा करने वाला और बहुत हद तक नकारात्मक है.यह बहुत हद तक व्यक्तिगत लेखन की ओर भी अग्रसर भी हो रहा है.
कल और आज की पत्रकारिता में अंतर जानने के लिए आवश्यक है कि हम पत्रकारिता की परिभाषा को सर्वप्रथम देखें और उसके तत्वों का विश्लेषण करें. पत्रकारिता के अंतर्गत सूचनाओं का संकलन, समाचार लेखन, समाचार चयन, संपादन और सम्प्रेषण प्रमुख कार्य हैं. पत्रकारिता का मूल उत्पादन समाचार है. इसलिए समाचार की परिभाषा ही पत्रकारिता की सही दिशा और दशा का परिचायक है.
समाचार की सबसे अच्छी वैज्ञानिक परिभाषा इस प्रकार है- समाचार वह आलेख है जो परिवर्तन को दर्शाता है और यह आलेख निश्चित रूप से जन हित में होना चाहिए. यानि, पत्रकारिता के दो स्पष्ट तत्व हैं:-
१. समाचार परिवर्तन को दर्शाने वाला आलेख और,
२. यह आलेख निश्चित रूप से जनहित में होना चाहिए.
परिवर्तन के तीन मुख्य चरण हैं:
१. धनात्मक परिवर्तन, अर्थात प्रगति;
२ ऋणनात्मक परिवर्तन, अर्थात अधोगति या अप्रगति
३. परिवर्तनहीनता जिसे अंग्रेजी में स्टैगनेशन कहते हैं, अर्थात यथास्थिति.
अब हम जनहित की बात करें तो इस तत्व का अर्थ है कि समाचार अधिसंख्यक लोगों के लिए हितकारी हो, देश हित में हो, मानवता के हित में हो.
जिस समाचार आलेख में ये दो तत्व न हों तो उस आलेख तो समाचार नहीं कह सकते हैं. पत्रकारिता की स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि कोई स्वहित में या मुद्रा लोभ में आदेशित लेखन कर, पत्रकारिता के मूल तत्वों को समाप्त कर दे. ऐसा लेखन न तो जनहित में है और न लोकतंत्र के हित में. पत्रकारिता की स्वतंत्रता के साथ जुड़े दायित्यों पर भी आवश्यकरूप से ध्यान देने की आवश्यकता है. से एक आम उदाहरण लें- एक बार एक व्यक्ति देश के एक अखबार का, राजनैतिक समर्थन से सम्पादक बन जाता है, और वह उस अखबार में अपने राजनैतिक आकाओं के हित का साधन करता है. कुछ वर्ष बाद, वह उसी राजनैतिक आकाओं की पार्टी का नेता बन जाता है. ऐसा प्रसंग आज की पत्रकारिता में एक आम प्रसंग बन गया है. अब अगर उसके तथाकथित पत्रकारिता को देखें तो पायेंगे कि उसने अपनी कलम से जो कुछ भी लिखा, उसका उद्देश्य तो स्वार्थसाधन ही था. ऎसी स्थिति में हम यही कह सकते हैं कि उसने पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों का पालन नहीं किया और हकीकत में पत्रकारिता का दुरुपयोग किया. उसकी कथित पत्रकारिता को हम दुष्प्रचार या 'प्रोपगंडा' कह सकते हैं. जन विरोधी भी कह सकते हैं.
कल की पत्रकारिता की विश्वसनीयता और आज की पत्रकारिता की विश्वसनीयता के स्तर में भी बहुत अंतर है. आज की पत्रकारिता की विश्वसनीयता गिरी है. कल की पत्रकारिता एक मिशन थी, आज की पत्रकारिता एक पेशा बन कर रह गई है. इसे सम्हालने का प्रयास भी कुछ स्तर पर हुआ है, लेकिन प्रयास में सामूहिकता की कमी के कारण यह प्रयास लगभग प्रभावहीन है.
प्रत्रकारिता पर व्यावसायिकता हावी है. समाचार बाजार में बिकने वाली आम सामग्री की तरह एक सामग्री बन गया है. जो अखबार और टीवी पहले दूसरों को ही प्रचार देते थे या स्वयं प्रचार के माध्यम थे आज उनको अपने 'सर्वश्रेष्ठ' होने का प्रचार करना पड़ता है. वे अपने प्रचार के लिए बहुत बड़ा बजट बनाते हैं. बाजार से व्यावसायिक विज्ञापन पाने के लिए यानि अधिकाधिक धन बटोरने के लिए, समाचार पत्रों और टीवी समाचार चैनलों में जंग चलती रहती है. सब के सब टीआरपी के बढ़ाने के लिए समाचारों को इस्तेमाल करते हैं. फलस्वरुप, सनसनीखेज समाचारों के लिखने का प्रचलन बहुत बढ़ गया है. समाचार चैनलों पर आम तौर से समाचार कम और दूसर चैनलों ले उधर लिए गए बसी मनोरंजन के कार्यक्रम ज्यादा दिखाए जाते हैं, और समाचार स्क्रौल में सिमटा सकुचा सा नजर आता है.
दूसरी ओर, स्टिंग के द्वारा पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े घोटालों को उजागर किया गया है. यह आधुनिक पत्रकारिता की एक नई विधा है, लेकिन अनेक बार इसके दुरूपयोग की खबरें भी आयी हैं. यह विधा नई तकनीक की देन है. पत्रकारिता में नैतिकता का भी ह्रास हो रहा है. पत्रकारिता में जब हम नैतिकता की बात करते हैं तो, हम मुख्यरूप से इन बिन्दुओं की ओर ध्यान देते हैं. लेकिन यह विधा बहुत प्रभावी साबित हुई है. सारी खामियों के बावजूद आधुनिक पत्रकारिता ने वर्तमान युग की सबसे बड़ी महामारी भ्रष्टाचार से लड़ने का जो काम किया है, वह काबिले तारीफ़ है.
१ . पत्रकारिता सत्यनिष्ठ हो;
२. जनहित में हो;
३. वीभत्स समाचार या दृश्यों को इस प्रकार लिखा और दर्शाया जाए कि उससे किसी के दिल दिमाग पर बुरा असर न पड़े.
४. बाल अपराधियों या बच्चों पर हुए अपराध की घटनाओं में बच्चों की तस्वीर या उनका नाम पता न प्रकाशित केए जायें. महिलाओं पर हुए अत्याचार या अपराध को लिखने हुए पीड़िता की तस्वीर या पता न प्रकाशित किया जाये;
५.किसी अपराधी के परिवार के लोगों या उनके मित्रों को समाचार में बेवजह न शामिल किया जाये;
६. सांप्रदायिक दंगों पर लेखन करते हुए समुदायों या जातियों का वर्णन न किया जाये और दंगा भड़काने वाले आलेख न छापे जायें.
७. एक सीमा तक, किसी की निजता में घुसपैठ न की जाये. अगर किसी कि निजता में प्रवेश करना जनहित में आवश्यक हो तो प्रवेश किया जा सकता है, लेकिन यह कार्य तभी सम्पादित किया जाना चाहिए जब यह बात तथ्यपूर्ण ढंग से स्पष्ट हो कि लक्ष्य व्यक्ति अपनी निजता में गैर कानूनी काम कर रहा है.
८. व्यावसायिकता के लक्ष्यों की प्राप्ति के क्रम में पत्रकारिता के नैतिक सिद्धांतों की बलि न चढ़ाई जाए. इनके अलावा भी पत्रकारिता की नैतिकता और भी आयाम हैं.
अगर हम इन आयामों की और ध्यान दें तो पायेंगे की पत्रकारिता में अब इनकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है. कुछ ही दिनों पहले एक माध्यम पर एक आदमी को आग लगा कर मर ने के दृश्यों को दिखलाया गया, जबकि उन दृश्यों को संकलित करने वाले व्यक्ति को देश के कानून के अंतर्गत अपराध में सहयोग का दोषी पाते हुए दंड दिया जाना चाहिए था. मुंबई में आतंकी हमले के समय जीवंत कमांडो कार्यवाही को दिखलाने के कारण आतंकियों को मदद मिल गयी.
अनेक माध्यमों ने आतंकवादियों, देश की अखण्डता के विरोधियों, सम्प्रदाइक तत्वों आदि को बहुत प्रचार दे कर आम लोगों में भ्रम और दहशत पैदा करने का भी काम किया है.
लेकिन आशा की जानी चाहिए की पत्रकारिता में अवसाद का यह युग समाप्त होगा और फिर एक बार पत्रकारिता अपने मूल धर्म के साथ विकसित होगी और देश में जनहित का मिसाल कायम करेगी. यह साफ़ दिख रहा है कि आने वाली पढ़ी सामप्रदायिकता और सनसनीखेज पत्रकारिता से ऊब गई है, और वह उसमें बदलाव चाहती है. यह एक शुभ संकेत है.
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