कश्मीर में आज जो विकराल समस्या पैदा हुई है, उसके लिए भाजपा की साम्प्रदाइक नीति सब से ज्यादा जिम्मेदार है. यह बात सच है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने घाटी में अपने पैर जमा लिए हैं और वे कश्मीर के पाकिस्तान के साथ विलय के लिए खुलेआम मांग कर रहे हैं. केंद्र और कश्मीर की सरकार ने सम्मिलितरूप से आतंकवादियों की जड़ हिलाने में सफलता नहीं पाई है. लेकिन, कश्मीर में आतंकवादियों को पैर जमाने में भाजपा की साम्प्रदाइक नीति सबसे अधिक जिम्मेदार है. संविधान में कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को समाप्त करने की मांग को लेकर भाजपा, बजरंगदल की कारगुजारियां और दंगे की राजनीति ने कश्मीर के मुसलमानों को ही नहीं, भारत के अन्य हिस्सों के मुसमानों को भी सशंकित कर दिया है.
भाजपा ने कश्मीर में और कश्मीर के बहार भी हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई खोदने का कभी कोई अवसर कभी नहीं छोड़ा है, और अगर अवसर हाथ नहीं आ रहा है तो, उसने अवसर पैदा किया है. आखिर भाजपा के पूज्य सावरकर ने ही तो भारत विभाजन की रूपरेखा अंग्रेजों के साथ मिल कर बनाई थी और उनकी संचालक संस्था आर. एस. एस. हमेशा से कथित हिन्दू संस्कृति और हिन्दू राष्ट्र की बात गढ़ती रही है. उसने भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति को कभी नहीं स्वीकारा. उसने मनु के हिन्दू विरोधी ग्रन्थ से कभी अपने को अलग करने कोशिश नहीं की, जिस ग्रन्थ के कारण हिन्दू यानी सनातन धर्म का विनाश हो गया और हिन्दू समाज जाति भेद की बीमारी से आज तक त्रस्त है उससे वह आज तक चिपकी हुई है.
भाजपा ने देश को हमेशा इमोशनल ब्लैकमेल किया है. कभी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के नाम पर तो कभी ईसाइयों के खिलाफ हिंसक वारदात कर या वारदात करने वालों को समर्थन दे कर. भाजपा की राजनीती कभी भी रचनात्मक नहीं रही है. अयोध्या में मस्जिद को गिराने में भाजपा और बजरंगदल का कितना हाथ है, यह किसी से छिपा नहीं है.खैर, इस पर न्यायालय विचार कर रहा है. लेकिन मुजरिमों को सबने टेलीविजन अपनी आँखों से देखा है. न्यालय की प्रक्रिया लम्बी चलती है और इसी का फायदा भाजपा और उसके आका संगठन आर.एस.एस. हेशा उठाते रहे हैं. भारत आतंरिक और जातीय एकता तो तोड़ने में भाजपा की स्पष्ट भूमिका रही है.
जो दल राष्ट्रवाद की बात करती है, उसे तो देश की एकता को और मजबूत करने वाली नीति अपनानी चाहिए थी, लेकिन उसकी नीति पूर्ण रूप से कट्टरवादी है जो लोकतंत्र कि स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है. अनेक बार अयोद्या के नाम पर या राम के नाम पर उसने आम जनता को ठगा है. रामायण के हर कांड में आदर्श है, जबकि भाजपा ने जितने भी कांड किये हैं, उनमें आदर्श की बात सोची ही नहीं जा सकती है! उसे इस बात का अहसाह है कि बिना भावना भड़काए वह चुनाव में विजय हासिल नहीं कर सकती है.इसी अहसास के कारण, पिछले कुछ चुनावों में उसने बार-बार राम मंदिर के मामले को गर्माने की कोशिश की. उसकी इस नीति पर उसके ही दल के नेता और पत्रकार अरुण शौरी ने कहा था-"किसी कारतूस का दुबारा प्रयोग नहीं किया जा सकता है." लेकिन गडकरी इस मुद्दे को फिर उठाने की बात कर रहे हैं. एक बार अडवाणी की घोर साम्प्रदाइक रथ यात्रा ने देश की साम्प्रदाइक एकता को तार तार कर दिया था लिकिन अब ऐसा प्रतीत हॉट है कि आज का युवा वर्ग भाजपा कि नीति में कतई विश्वास नहीं रखता हैं. लेकिन इस प्रचारवादी पार्टी को भावना भड़काने के अनेक तौर तरीके आते हैं. इस लिए उसकी नीति से देश को हर मोड़ पद हानि उठानी पद सकती है.